Thursday, 26 August 2010

क्या आपने कभी घोड़े को सोते हुए देखा है, वह भी अन्य पशुओं की भांति लेटकर? नहीं न। उनके सोने या लेटने की बात तो दूर, आपने उसे कभी बैठते हुए भी नहीं देखा होगा। क्या वह वाकई सोता, लेटता या बैठता नहीं है? क्योंकि जब कभी आप उसे देखते हैं, वह खड़ा हुआ और जागृत अवस्था में ही दिखाई देता है।
घोड़े को नींद बहुत कम आती है। वह दिनभर में मुश्किल से आधा घंटा ही गहरी नींद सो पाता है। इस दौरान कुछ पल वह लेट सकता है। यद्यपि उसकी नींद झपकियों में ही पूरी होती है तथापि दिनभर में कई बार उसे गहरी नींद के झोंके भी आते हैं। घोड़े चौबीस घंटे खड़े रहकर भी थकते नहीं हैं और न ही थक कर गिरते हैं। प्रकृति ने उनके पैरों की रचना इस प्रकार से की है कि वे बिना गिरे नींद ले लेते हैं। थकान से बचने के लिए जब वे खड़े होते हैं तो चार में से कोई एक पैर थोड़ा ऊपर उठाकर रखते हैं। ऐसी स्थिति में शरीर का वजन तीसरे पैर पर होता है। बारी-बारी से वह अपने एक पैर को ऊपर रखकर थकान मिटा लेते हैं।
घोड़े की बनावट ही कुछ ऐसी होती है, जिसकी वजह से वह लंबे काल तक बैठ या लेट नहीं सकता। बैठने की स्थिति में शरीर का पूरा भार गर्दन और पेट के मध्य के भाग पर आ जाता है, जो उसके श्वसन तंत्र पर दबाव डालता है और श्वास लेने में कठिनाई होती है और हवा ठीक तरह से फेफड़ों तक नहीं पहुंच पाती। इसलिए कुछ ही देर में वह उठ खड़ा होता है। यदि वह लंबे समय तक लेटा रहे तो उसकी मौत भी हो सकती है।
घोड़ा जब चलता है तो उसकी गति में कुछ विशेषताएं देखी जा सकती हैं। पहली गति से वह जमीन पर एक समय में एक ही पैर रखता है, इसके बाद अगला पैर एक दिशा में तथा पिछला पैर दूसरी दिशा में एक साथ जमीन पर पड़ते हैं। इसी वजह से टापों की आवाज सुनाई देती है। वैसे वह अगले दोनों पैर या पिछले दोनों पैर भी एक साथ जमीन पर रखकर दौड़ सकता है। जब वह तेजी से दौड़ता है तो उसके चारों पैर हवा में उछलते दिखाई देते हैं।
 

वाह क्या घोड़े है भाई......................................................गजब


दीपक  

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