Monday, 1 November 2010

इंदिरा गाँधी की पुण्यतिथि पर लेख

 

पीएम के लिए ऐंबुलेंस तक नहीं मिली -

हेड कान्सटेबल नारायण सिंह हो या आर के धवन। सब हक्के-बक्के थे। वक्त जैसे थम गया था। दिमाग में खून जमने जैसी हालत थी। तभी बेअंत सिंह ने आर के धवन की ओर देखकर कहा- हमें जो करना था वो हमने कर लिया। अब तुम जो करना चाहो, वो करो। वहां मौजूद सभी लोग एक झटके के साथ होश में आए।
आर के धवन के मन में एक ही बात आई। इंदिरा को जल्द से जल्द हॉस्पिटल पहुंचाया जाए। वो जोर से चीखे-एंबुलेंस।
उनकी बात का किसी ने जवाब नहीं दिया। पास में खड़े एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट ने तुरंत बेअंत और सतवंत को काबू में ले लिया। उनके हथियार जमीन पर गिर गए। उन्हें तुरंत पास के कमरे में ले जाया गया। एसीपी दिनेश चंद्र भट्ट कहते हैं कि उस वक्त जो हो सकता था किया गया लेकिन चूंकि वो इतना अचानक और अनएक्सपेक्टेड और डिवास्टेटिंग था कि उसको रिकॉल करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है।
अब तक छाता लेकर भौचक्क खड़ा रहा हेड कॉन्सटेबल नारायण सिंह भी हरकत में आया। उसने छाता फेंका और डॉक्टर को बुलाने के लिए दौड़ पड़ा। एक अकबर रोड के लॉन में इंदिरा का इंतजार करते हुए आइरिश डेलिगेशन को फायरिंग की आवाज अजीब सी लगी। फिर उन्हें लगा कि शायद एक बार फिर दीवाली के पटाखे फोड़े गए हैं। डायरेक्टर पीटर उस्तीनोव वहीं पर इंदिरा का इंतजार करते रहे।
इधर आर के धवन ने इंदिरा को उठाने की कोशिश की। तभी बुरी तरह घबराई हुईं सोनिया गांधी भी वहां पहुंच गईं। तब तक कई दूसरे सुरक्षाकर्मी भी उस गेट के पास पहुंच चुके थे। धवन और सोनिया ने मिलकर इंदिरा को उठाया। आर के धवन बताते हैं कि उस वक्त तो यही दिमाग काम किया कि उनको एकदम से हॉस्पिटल ले जाया जाए। मैंने उस वक्त एक एंबुलेंस जो वहां रहती थी उसे बुलाया लेकिन एंबुलेंस नहीं आई। पता चला उसका ड्राइवर चाय पीने गया हुआ था।
एंबुलेंस के पहुंचने की कोई संभावना नहीं थी इसलिए सोनिया-आर के धवन और बाकी सुरक्षाकर्मी इंदिरा गांधी को लेकर एक सफेद एंबेसेडर कार तक पहुंच गए। तय हुआ कि कार से ही इंदिरा को एम्स लेकर जाया जाए। इंदिरा गांधी का सिर सोनिया ने अपनी गोद में रखा। उनके शरीर से लगातार खून बह रहा था।
इस बीच उस कमरे से एक बार फिर फायरिंग की आवाज आई जिसमें सुरक्षाकर्मी बेअंत और सतवंत को लेकर गए थे। यहां बेअंत ने एक बार फिर हमला करने की कोशिश की थी। उसने अपनी पगड़ी में छिपाए चाकू को बाहर निकाल लिया। बेअंत और सतवंत दोनों ने इस कमरे से भागने की कोशिश की लेकिन जवाबी कार्रवाई में सुरक्षाकर्मियों ने बेअंत को वहीं ढेर कर दिया। सतवंत को भी 12 गोलियां लगीं लेकिन उसकी सांसें चल रही थीं।
गोलियों का शोर थमा तो एक और शोर शुरू हुआ। उस सफेद एंबेसेडर के स्टार्ट होने की आवाज जिसमें इंदिरा गांधी को लिटाया गया था। सोनिया एक टक इंदिरा की तरफ देख रही थीं। दूर खड़े आयरिश फिल्म मेकर पीटर उस्तीनोव को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हुआ। सुरक्षाकर्मी तेजी के साथ एक तरफ से दूसरी तरफ भाग रहे थे। लॉन में हड़कंप मचा हुआ था। पीटर उस्तीनोव ने एक इंटरव्यू में कहा है-उस वक्त एक अकबर रोड की चिड़ियां और गिलहरियां भी अजीब बर्ताव कर रही थीं। सात मिनट के अंतर पर दो बार फायरिंग की जोरदार आवाज के बावजूद उन पर कोई असर नहीं था। उन परिंदों को जैसे पता था कि गोलियां उन्हें निशाना बनाकर नहीं मारी गईं।
घायल इंदिरा को सोनिया, धवन लेकर पहुंचे एम्स -
एंबेसेडर तेजी के साथ एक अकबर रोड से निकली। आगे बैठे आर के धवन, दिनेश भट्ट और पीछे सोनिया ने इंदिरा का सिर अपनी गोद में रखा हुआ था। ये वो वक्त था जब गांधी परिवार ही नहीं एक और शख्स की जिंदगी बदलने जा रही थी। बीबीसी के संवाददाता सतीश जैकब के एक दोस्त की नजर सोनिया गांधी पर पड़ गई। उस दोस्त ने तुरंत जैकब को फोन मिलाया।
सतीश जैकब कहते हैं-उसने कहा कि एक सफदरजंग रोड के सामने से निकला तो इंदिरा गांधी के घर में से एक एंबुलेंस बाहर आई और मैं पक्का तो नहीं हूं लेकिन उसमें सोनिया गांधी बैठी हुई थीं और पता करो...क्या हुआ।
एक मंझे हुए पत्रकार को इशारा ही काफी था। कुछ तो गड़बड़ हुई है। जैकब ने तुरंत राजीव गांधी के निजी सचिव विन्सेट जॉर्ज को फोन मिलाया। लेकिन मुश्किल ये कि आखिर जॉर्ज से खबर कैसे पता करें।
सतीश जैकब कहते हैं कि जॉर्ज को मैंने फोन किया तो सोचा कि ऐसे सवाल करूं कि वो कुछ छुपा न सके। तो मैंने जॉर्ज से इतना कहा कि ज्यादा सीरियस तो नहीं है मामला। तो उसने कहा कि सीरियस तो नहीं है लेकिन एम्स ले गए हैं। मैंने कहा चलो एम्स चलकर देखते हैं।
इस बीच इंदिरा गांधी को लेकर एंबेसेडर कार तेजी से एम्स की तरफ भागती जा रही थी। वैसे तो एम्स में इंदिरा का पूरा रिकॉर्ड, उनके ब्लड ग्रुप का ब्योरा, सभी कुछ मौजूद था लेकिन अस्पताल पहुंचाने की हड़बड़ी में किसी को याद ही नहीं रहा कि एम्स फोन करके ये बता दिया जाए कि इंदिरा को गोली मारी गई है। घड़ी वक्त दिखा रही थी 9 बजकर 32 मिनट। एम्स पहुंचते ही इंदिरा गांधी को वीआईपी सेक्शन लेकर जाया गया लेकिन वो उस दिन बंद था। धवन उन्हें इमरजेंसी की तरफ लेकर भागे वहां कुछ नौजवान डॉक्टर मौजूद थे। वो मरीज को देखते ही हड़बड़ा गए। तभी किसी का दिमाग काम किया। उसने तुरंत अपने सीनियर कार्डियोलॉडिस्ट को खबर दी। वो सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट कोई और नहीं डॉक्टर वेणुगोपाल थे।
डॉक्टर वेणुगोपाल बताते हैं कि हमारे सहयोगी डॉक्टर ने बताया कि आप नीचे आ जाइए इंदिरा गांधी को लेकर आए हैं। उनको देखना है। हम उसी ड्रेस में नीचे गए थे कैजुएलिटी में। जब गए थे तो हमने देखा वो एक ट्रॉली पर लेटी हुई हैं और काफी खून बह रहा।
इस वक्त तक बीसीसी संवाददाता सतीश जैकब भी एम्स पहुंच गए थे। एम्स में तूफान से पहले वाला सन्नाटा था। इंदिरा के शरीर से लगातार खून बह रहा था। इमरजेंसी में तब तक दर्जन भर सीनियर डॉक्टर जुट चुके थे। पहली कोशिश ये कि लगातार बहते खून को रोका जाए। इंदिरा के शरीर का तापमान भी तेजी से नीचे गिर रहा था। डॉक्टरों ने तुरंत उनके फेफड़ों में ऑक्सीजन पहुंचाने वाली मशीन लगाई। ईसीजी मशीन दिखा रही थी उनका दिल मंद गति से धड़क रहा था। इसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें हार्ट मशीन भी लगा दी हालांकि उन्हें इंदिरा की पल्स नहीं मिल रही थी। धीरे-धीरे इंदिरा की पुतलियां फैलती जा रही थीं। साफ था कि दिमाग में खून पहुंचना लगभग रुक गया है।
डॉक्टरों की टीम ने उन्हें आठवें फ्लोर के ऑपरेशन थिएटर में ले जाने का फैसला किया। हालांकि जिंदगी का कोई निशान उनके शरीर में नजर नहीं आ रहा था लेकिन फिर भी 12 डॉक्टरों की टीम चमत्कार की आस में उन्हें बचाने की कोशिश में जुट गई। इधर बीबीसी संवाददाता सतीश जैकब भी तेजी के साथ एम्स पहुंचे। उन्हें ये तो मालूम था कि एक अकबर रोड पर कुछ अनहोनी हुई है लेकिन वो अनहोनी क्या है ये पता करना उनके लिए बड़ी चुनौती थी।
सतीश जैकब बताते हैं कि मैं गाड़ी पार्क करके लिफ्ट से उधर गया। जैसे ही लिफ्ट से बाहर निकला तो देखा एक बुजुर्ग से डॉक्टर मुंह से कपड़ा हटा रहे थे। ऐसा लगता था कि मानो ओटी से आए हों तो मैंने फिर वही किया। मैंने ये नहीं पूछा कि आप किसका क्या कर रहे हो। मैंने पूछा-सब ठीक तो है ना। जान तो खतरे में नहीं है ना। उन्होंने मुझे बड़े गुस्से में देखा। कहा कैसी बात करते हो। अरे सारा जिस्म छलनी हो चुका है तो मैंने उनसे कुछ नहीं कहा। वहीं आईसीयू के बाहर आर के धवन खड़े थे। चेहरे से ऐसा लग रहा था कि चिंता में हैं। वहां आर के धवन से मैंने इतना कहा कि धवन साहब, ये तो बहुत बुरा हुआ। कैसे हुआ ये तो उन्होंने कहा कि वो अपने घर से निकल पैदल आ रही थीं। वो पीछे-पीछे चल रहे थे अचानक गोलियों की आवाज आई।


मेरी ओर से इंदिरा जी को भाव भीनी श्रद्धांजलि................................................................

दीपक

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