Thursday, 4 November 2010

रूप चौदस पर विशेष लेख


आज दिवाली का दूसरा दिन है जिसे रूपचौदस के रूप में कहा व मनाया जाता है 
आप सभी को रूप चौदस की बहुत बहुत बधाई 



धनतेरस से दीवाली के पावन पर्व की शुरूआत हो जाती है। धनतेरस के अगले दिन रूपचौदस का त्यौहार आता है। रूपचौदस के दिन दीप दान करने की प्रथा है। रूपचतुर्दशी को नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। ऎसा माना जाता है कि इस दिन दीपदान करने से मृत्युपरांत नरक के दर्शन नहीं होते हैं।
इस दिन गुजरात में मां काली की पूजा की जाती है और हनुमानजी की भी पूजा की जाती है। इसलिए गुजरात में इसे काली चतुर्दशी के भी नाम से जाना जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और उनके सहायक चित्रगुप्त की पूजा भी की जाती है। प्राचीन काल से ही हमारे समाज में इस दिन दीप दान करने की प्रथा रही है। ऎसी मान्यता है कि आज के दिन दीप दान करने से खुद के अन्दर के अंधकार के साथ-साथ पिछले जन्म के पाप भी धुल जाते हैं। साथ ही जीवन में एक नई रोशनी का संचार होता है। ऎसा भी माना जाता है कि दीपदान करने से यमराज और चित्रगुप्त प्रसन्न होते हैं और मनुष्य को नरक के दर्शन नहीं करने पडते। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि दीप दान करने से अज्ञानता और अंधकार दूर होता है और जीवन में नए ज्ञान और धर्म का प्रकाश होता है।





दीपक 

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