पिछले भाग का शेष..............................................................
हमारा जन्म ऋणानुबंधो पर आधारित है | पितृ व वंशज आपस में किन्ही ना किन्ही ऋणों में बंधे हुए है | पितृ के ये ऋण हमारे ऊपर पैत्रिक ऋण के नाम से जाना जाता है | पुत्र को उत्पन्न करके हम कुछ हद तक पितृ ऋण से मुक्त होते हैं, लेकिन पूरी तरह से नहीं | जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है, तो ये नीचाभिलाषी होकर 'कन्यार्कगत' कहलाते है और इस्सी शब्द से कनागत कि उत्पत्ति हुई है |
आगे और भी है....................................................
दीपक
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